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Table of Contents

धाराएं जिसके सम्बंध में UP Si में अबतक सवाल पूछे गए- सेट-1 (20 Points)

धारा-1
संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार
धारा-2
भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड।
धारा-3
भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड
धारा-4
राज्यक्षेत्रातीत / अपर देशीय अपराधों पर संहिता का विस्तार
धारा-5
कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना
धारा-6
  • संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना

इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की हर परिभाषा, हर दण्ड उपबन्ध और हर ऐसी परिभाषा या दण्ड उपबन्ध का हर दृष्टान्त, “साधारण अपवाद” शीर्षक वाले अध्याय में अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दण्ड उपबन्ध या दृष्टान्त में दुहराया न गया हो ।

दृष्टांत : (क) इस संहिता की वे धाराएँ, जिनमें अपराधों की परिभाषाएँ अन्तर्विष्ट हैं, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि सात वर्ष से कम आयु का शिशु ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किन्तु परिभाषाएँ उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जानी हैं जिसमें यह उपबन्धित है कि कोई बात, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है, अपराध नहीं है ।

(ख) ‘क’ , एक पुलिस ऑफिसर, वारण्ट के बिना, ‘य’ को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है । यहाँ ‘क’ सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह ‘य’ को पकड़ने के लिए विधि द्वारा आबद्ध था, और इसलिए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि “कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो ।

धारा-8
लिंग

भारतीय दंड संहिता कीधारा 8के अनुसार, पुलिंग वाचक शब्द जहां प्रयोग किए गए हैं, वे हर व्यक्ति के बारे में लागू हैं, चाहे नर हो या नारी

धारा-34
सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य

भारतीय दंड संहिता कीधारा 34के अनुसार, जब एक आपराधिक कृत्य सभी व्यक्तियों ने सामान्य इरादे से किया हो, तो प्रत्येक व्यक्ति ऐसे कार्य के लिए जिम्मेदार होता है जैसे कि अपराध उसके अकेले के द्वारा ही किया गया हो।

धारा-41
विशेष विधि

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा41के अनुसार पुलिस के पास यह अधिकार हो जाता है, कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन बिना वारंट के गिरफ्तार करने के लिए उस व्यक्ति का जुर्म बहुत ही संगीन होना चाहिए, किसी मामूली से या छोटे मामले में पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकता है

धारा-45
जीवन

भारतीय दंड संहिता की धारा 45 के अनुसार, जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, जीवन शब्द मानव के जीवन का द्योतक है

धारा 46
मृत्यु

भारतीय दंड संहिता की धारा 46 के अनुसार, जब तक कि संदर्भ केे तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, मॄत्यु शब्द मानव की मॄत्यु का द्योतक है ।

धारा-50
धारा

भारतीय दंडसंहिता कीधारा 50के अनुसार,धाराशब्द इस संहिता के किसी अध्याय के उन भागों में से किसी एक का द्योतक है, जो सिरे पर लगे संख्यांकों द्वारा सुभिन्न किए गए हैं ।

धारा-71
कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि

भारतीय दंडसंहिता कीधारा 71के अनुसार, जहां कि कोई अपराध कार्य, ऐसे भागों से, जिनका कोई भाग स्वयं अपराध है, मिलकर बना है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराधों में एक से अधिक केदण्डसे दण्डित नहीं किया जाएगा, जब तक कि ऐसा स्पष्ट रूप से उपबन्धित न हो।

धारा-72
कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है

भारतीय दंड संहिता की धारा 72 के अनुसार, उन सब मामलों में, जिनमें यह निर्णय दिया जाता है कि कोई व्यक्ति उस निर्णय में विनिर्दिष्ट कई अपराधों में से एक अपराध का दोषी है, किन्तु यह संदेहपूर्ण है कि वह उन अपराधों में से किस अपराध का दोषी है, यदि वही दण्ड सब अपराधों के लिए उपबन्धित नहीं है तो वह अपराधी उस अपराध के लिए दण्डित किया जाएगा, जिसके लिए कम से कम दण्ड उपबन्धित किया गया है ।

धारा-73
एकांत परिरोध

भारतीय दंड संहिता की धारा 73 के अनुसार, जब कभी कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाता है जिसके लिए न्यायालय को इस संहिता के अधीन उसे कठिन कारावास से दंडादिष्ट करने की शक्ति है, तो न्यायालय अपने दंडादेश द्वारा आदेश दे सकेगा कि अपराधी को उस कारावास के, जिसके लिए वह दंडादिष्ट किया गया है, किसी भाग या भागों के लिए, जो कुल मिलाकर तीन मास से अधिक न होंगे, निम्न मापमान के अनुसार एकांत परिरोध में रखा जाएगा, अर्थात्् :–
यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक न हो ते एक मास से अनधिक समय ;
यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक हो और 2[एक वर्ष से अधिक न हो] तो दो मास से अनधिक समय ;
यदि कारावास की अवधि एक वर्ष से अधिक हो तो तीन मास से अनधिक समय ।

धारा-74
एकांत परिरोध की अवधि

धारा 74आईपीसी- एकांत परिरोध की अवधि , IPC Section74( IPC Section74. Limit of solitary confinement )भारतीय दंडसंहिता कीधारा 74के अनुसार, एकांत परिरोध के दण्डादेश के निष्पादन में ऐसा परिरोध किसी दशा में भी एक बार में चौदह दिन से अधिक न होगा ।

धारा-75
पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कतिपय अपराधों के लिए वर्धित दण्ड

भारतीय दंड संहिता की धारा 75 के अनुसार, जो कोई व्यक्ति -भारत में के किसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध हो, उन अध्यायों के तहत किसी अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी हो, होने वाले प्रत्येक अपराध के लिए विषय वस्तु हो, तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

धारा-76
विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप के विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य।

भारतीय दंडसंहिता कीधारा 76के अनुसार, कोई भी कार्य, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए, जो उसे करने के लिएविधिद्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न किविधिकी भूल के कारण सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिएविधिद्वारा आबद्ध है, अपराध नहीं है।

धारा-77
न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश का कार्य

भारतीय दंडसंहिता कीधारा 77के अनुसार, कोई बात अपराध नहीं है, जो न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश द्वारा ऐसी किसी शक्ति के प्रयोग में की जाती है, जो या जिसके बारे में उसे सद््भावपूर्वक विश्वास है कि वह उसेविधिद्वारा दी गई है ।

धारा-82
सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य।

भारतीय दंड संहिता की धारा 84 के अनुसार, जो कार्य किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए, जो उसे करते समय मन की अस्वस्थता के कारण उस कार्य की प्रकॄति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, वह अपराध नहीं है।

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